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मकर संक्रांति

मकर संक्रांति तक अच्छा खासा मुनाफा दिलाएगा यह व्यवसाय

मकर संक्रांति तक अच्छा खासा मुनाफा दिलाएगा यह व्यवसाय

जनवरी का माह चल रहा है, मकर संक्रांति का त्यौहार आने को है। इस दौरान तिल से निर्मित मिठाईयां एवं खाद्य उत्पादों की माँग काफी तेजी से बढ़ जाती है।  इसलिए तिल की प्रोसेसिंग का व्यापार करना अत्यंत मुनाफा दिला सकता है। यह नव वर्ष किसानों हेतु अच्छा होने वाला है। नवीन कृषि तकनीकों एवं योजनाओं  सहित कृषकों को व्यापार करने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे कि उनकी आय को बढ़ाया जा सके। हालाँकि गांव में रहने वाले बहुत सारे किसान खेती सहित पशुपालन भी किया करते हैं, परंतु आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं, कि मकर संक्रांति के त्यौहार पर चलने वाले व्यापार के संबंध में बताएंगे, इसके माध्यम से आप आगामी 15 दिन के भीतर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। दरअसल, मकर संक्रांति के त्यौहार के दौरान बाजार में तिल, गुड़ एवं मावा की माँग में वृद्धि हो जाती है, इस वजह से जो भी किसान खेती सहित पशुपालन भी करते हैं। वो अभी से तिल एवं दूध के फूड प्रोसेसिंग व्यवसाय पर कार्य  करके अच्छी खासी आय कर सकते हैं।

तिल की क्या विशेषताएँ हैं

सर्दियों में लोगों को गर्म खाद्य उत्पाद का उपभोग करने की सलाह दी जाती है। विज्ञान व आयुर्वेद में भी तिल की भाँति गर्म खाद्य पदार्थों को सर्दी हेतु काफी बेहतर बताया जा रहा है। यदि आप चाहें तो तिल के तेल से खाना निर्मित करें या फिर इसकी मिठाई खाएं। बतादें, कि तिल हमारे स्वास्थ्य को हर प्रकार से लाभ प्रदान करता है। अगर हम तिल के शुद्ध तेल 400 से 500 रुपये लीटर तक विक्रय होता है।


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तिल से निर्मित होने वाली मिठाइयाँ

राजस्थान राज्य में तिल का उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाता है। प्रदेश के किसानों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु तिल के प्रोसेसिंग व्यवसाय की तरफ प्रेरित किया जा रहा है, इससे यह फायदा यह है, कि किसान तिल के तेल एवं इससे दूसरे उत्पाद निर्मित कर अच्छी खासी आमदनी कर सकते हैं। केंद्र व राज्य सरकार भी कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से प्रशिक्षण भी मुहैय्या कराती है। किसानों से लेकर घरेलू महिलाएं अथवा कोई भी आम नागरिक कृषि विज्ञान केंद्र से फूड प्रोसेसिंग का प्रशिक्षण लेकर स्वयं व्यवसाय शुरू किया जा सकता है। आजकल तिल से निर्मित तिलकुट, मिठाई, चीनी, मावा, एवं गुड़ की काफी मांग है। बाजार में 200 से 600 रुपये किलो के मूल्य से यह मिठाई विक्रय की जा रही है। बाजार में स्थाई एवं अस्थाई दुकानों, ठेलों में तिल की मिठाई की बेहद माँग रहती है। इस वजह से किसी प्रकार की विपणन संबंधित चुनौती भी नहीं रहती है। काफी कम दिनों के अंतराल में ही यह मिठाई बन जाती हैं, यदि आप चाहें तो स्वयं गांव के लोगों अथवा घरेलू महिलाओं को भी इस व्यवसाय से जोड़ सकते हैं। इन समस्त बातों के अलावा, बाजार में तिल के तेल की माँग सदैव बनी रहती है। अगर आपकी फसल खरीफ सीजन में बेहतर हो पायी है, तो 200 रुपये किलो विक्रय वाले तिल द्वारा 500 रुपये लीटर का तेल निकाल अच्छी आय कर सकते हैं।
लोहड़ी का त्यौहार कब, कैसे और किस वजह से मनाया जाता है

लोहड़ी का त्यौहार कब, कैसे और किस वजह से मनाया जाता है

लोहड़ी का त्यौहार मुख्य रूप से पंजाब व हरियाणा में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। लोहरी भारत के उत्तर प्रान्त में ज्यादा जोर-शोर से मनायी जाती है। लोहड़ी के समय सम्पूर्ण भारत में पतंगे उड़ती दिखाई नजर आती हैं। सम्पूर्ण देशवासी अपनी-अपनी भावनाओं और मान्यताओं के अनुरूप इस त्यौहार को खुशी से मनाते हैं।

लोहड़ी त्यौहार का मुख्य ध्येय क्या होता है

आमतौर पर त्यौहार प्राकृतिक बदलाव के अनुरूप मनाये जाते हैं। लोहड़ी भी कुछ इसी तरह का त्यौहार है। क्योंकि
लोहड़ी वाले दिन साल की आखिरी सर्वाधिक रात्रि होती है। इस रात्रि के बाद आगामी दिनों में दिन बढ़वार आने लगती है। इसी दौरान किसानों की फसल तैयार होकर लहलहाटी है। किसानों के लिए यह भी बड़ी खुशी की बात होती है। साथ ही, मौसम भी बेहद अच्छा होता है। इस त्यौहार को परिजन एवं मित्र सब हिल-मिलकर बड़ी खुशी के साथ मनाते हैं। इस त्यौहार को एक साथ प्रशन्नता से मनाने से सौहार्द, प्रेम और भाईचारा बढ़ता है। जो कि लोहड़ी त्यौहार का का मुख्य ध्येय है। साथ ही, अग्नि एवं सूर्य देव को भोग लगाकर आगामी फसल अच्छी होने की अरदास भी की जाती है।

लोहड़ी कब मनाई जाती है

लोहड़ी के त्यौहार को जनवरी माह 13 तारीख की शाम से मकर संक्राति की सुबह होने तक बड़े हर्षोल्लास एवं खुशी से मनाते हैं। लोहरी हर साल मनाये जाने वाला त्यौहार है। लोहड़ी को पंजाबी लोग बेहद धूम धाम से मनाते हैं। भारत त्यौहारों के मामले में विश्वभर में अपनी अलग पहचान रखता है। देश के प्रत्येक प्रान्त में अपनी अपनी मान्यताओं से लोग एक साथ मिलकर त्यौहार मनाते हैं। लोहड़ी त्यौहार की चहल पहल काफी दिन पूर्व से आरंभ हो जाती है।

लोहड़ी के त्यौहार के पीछे ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों ही महत्त्व हैं

अगर हम लोहड़ी के पौराणिक महत्त्व के बारे में जानें तो इस त्यौहार को सती के त्याग व बलिदान को हर साल याद करके मनाया जाता है। कथा के अनुरूप जिस समय प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव का तिरस्कार अपनी पुत्री सती की उपस्थित में भरी सभा में किया था। साथ ही, भगवान शिव को यज्ञ में शम्मिलित करने हेतु कोई निमंत्रण नहीं दिया गया तब माता सती जी स्वयं अग्नि में समर्पित हो गई थीं। उस दिन को एक पश्चाताप के तौर पर हर साल लोहड़ी पर मनाते हैं। इस वजह से घर की विवाहित पुत्री को लोहड़ी के दिन उपहार प्रदान किए जाते हैं। बेटियों को घर पर भोजन करने के लिए सादर आमंत्रित करके उनका आदर किया जाता है। इस दिन हर्षोल्लास के साथ विवाहित महिलाओं को श्रृंगार की सामग्री वितरित की जाती है।
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लोहड़ी त्यौहार के ऐतिहासिक महत्त्व के बारे में जानें तो इसे दुल्ला भट्टी नामक पंजाबी सरदार की वजह से भी मनाया जाता है। यह बात तब की है जब अकबर का शासनकाल था। उस समय पंजाब प्रान्त के सरदार थे, दुल्ला भट्टी। उनकी छवि पंजाब के नायक के रूप में मानी जाती थी। उस समय संदलबार नाम का एक स्थान था, जो कि फिलहाल पाकिस्तान में आता है। वहाँ लड़कियों की खरीद फरोख्त की जाती थी। जिसका दुल्ला भट्टी ने विरोध किया और इस बात के बिल्कुल खिलाफ थे। दुल्ला भट्टी जी ने वहाँ की लड़कियों व महिलाओं का आदरपूर्वक इस दुष्कर्म से संरक्षण किया। केवल इतना ही नहीं उन लड़कियों का विवाह कराकर उनको एक सम्मानपूर्वक जीवन प्रदान किया। दुल्ला भट्टी की इस जीत के दिन को लोहड़ी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। दुल्ला भट्टी जी को याद किया जाता है। लोहड़ी त्यौहार को मनाने के दौरान यह बात गीतों में भी गायी जाती है।.

लोहड़ी का त्यौहार किस तरह से मनाया जाता है

लोहड़ी का त्यौहार विशेषरूप से पंजाबियों द्वारा नाच, गाकर और ढोल बजाकर बड़ी ही खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी आने से पन्द्रह दिन पूर्व से ही नौजवान और बच्चे हर घर में जाकर लोहड़ी के गीत गाने लग जाते हैं। लोहड़ी के दिन गीतों में वीर शहीदों को याद करते हैं, दुल्ला भट्टी जी का नाम उनमें से एक मुख्य नाम है। हमारे भारत देश में प्रत्येक त्यौहार का एक मुख्य व्यंजन या भोजन होता है। उसी प्रकार लोहड़ी के त्यौहार में रेवड़ी, मुंगफली, गजक इत्यादि का सेवन किया जाता है। पकवान भी इन्ही से तैयार किए जाते हैं। लोहड़ी में मुख्यतयः सरसों का साग व मक्के की रोटी बनती हैं जिसको बड़े ही प्रेम से लोग खाते हैं और अपने निज जनों को भी खिलाते हैं।
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लोहड़ी के त्यौहार पर अलाव का क्या महत्त्व होता है

लोहड़ी का त्यौहार आने से काफी समय पूर्व लकड़ी एकत्रित की जाती हैं। जिसको गाँव या नगर के मध्य में किसी बढ़िया सी जगह पर जमाया जाता है। लोहरी वाली रात्रि में अपने परिवारीजन एवं मित्रगणों के साथ प्रेमपूर्वक अलाव के आस पास बैठ जाते हैं। इस दौरान बहुत से खेल कूद, गीत गायन बिना किसी शिकवा शिकायत के एक दूसरे के साथ हिल मिलकर किये जाते हैं। उसके बाद अलाव की परिक्रमा लगाई जाती है एवं अपने निज जनों की उन्नति एवं अच्छे स्वास्थ्य हेतु प्रार्थना की जाती है। रात्रि में इस अलाव के पास बैठ कर लोग गन्ने गजक रेबड़ी इत्यादि खाते हैं।
मकर संक्रान्ति का त्यौहार कब और क्यों मनाया जाता है

मकर संक्रान्ति का त्यौहार कब और क्यों मनाया जाता है

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होने की वजह से मकर संक्रान्ति मनायी जाती है। साथ ही, इसी दौरान शुभ कार्य भी शुरू हो जाएंगे। मकर संक्रान्ति वाले दिन गंगा में स्नान व दान पुण्य जैसे कार्य करना बहुत अच्छे माने जाते हैं। मकर संक्रान्ति में इस बार रोहणी नक्षत्र, ब्रह्म योग एवं आनंदादि योग बन रहे हैं। इस वजह से यह मकर संक्रान्ति विशेष रहेगी। हिंदू धर्म में मकर संक्रान्ति पर्व अपना एक अहम महत्व रखता है। इस पर्व पर लोग घी, कंबल, गुड़ के दान गंगा स्नान, खिचड़ी, गर्म वस्त्र, तिल, चावल और भगवान के दर्शन से सुख-समृद्धि संपदा अर्जित करते हैं। इस बार मकर संक्रान्ति का पर्व 14 जनवरी को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। आचार्य डा. सुशांत राज के अनुसार मकर राशि में सूर्य के दाखिल होने के समय सूर्यदेव की पूजा काफी फलदायक साबित होती है। मकर संक्रान्ति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए हम इस पर्व को मकर संक्रान्ति के नाम से मनाते हैं। इस दिन को बहुत ज्यादा पावन माना जाता है। क्योंकि इस दिन से खरमास का समापन होता है, इसके बाद मांगलिक कार्यों का शुभारंभ हो जाता है। 14 जनवरी के दिन ही प्रातः करीब आठ बजकर दस मिनट से पुण्य काल शुरू हो जाएगा। मकर संक्रान्ति पर रोहणी नक्षत्र, ब्रह्म योग और आनंदादि योग बन रहे हैं, जिसको बेहद शुभ माना जाता है। माना जाता है, कि रोहणी नक्षत्र में दान-पुण्य करने से यश प्राप्ति की जा सकती है और कष्ट एवं दुखों का समापन होता है।

कोरोना संक्रमण के समय किस तरह करें स्नान

मकर संक्रान्ति के पुण्यकाल में पवित्र नदियों में सर्वप्रथम स्नान करने का बेहद महत्‍व है। परंतु, कोराना संक्रमण की आज की हालत को मद्देनजर रखते हुए घर पर स्‍नान किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में अपने घर में एक टब एवं बाल्‍टी में पानी में गंगाजल की बूंदे डालकर स्नान कर सकते हैं। उसके बाद सूर्यदेव को अर्ध्य दें एवं उनकी पूजा अर्चना करें। ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ दान भी देदें। काले तिल का दान भी करें। मकर संक्रान्ति के दिन को लेकर धार्मिक मान्यता है, कि मकर संक्रान्ति के दिन देवता भी पृथ्वी पर अवतार लेते हैं।

खरमास का होगा अंत

मकर संक्रान्ति के प्रवेश के करते ही सूर्य देव उत्तरायण हो जाएंगे। आचार्य डा. सुशांत राज के मुताबिक, एक माह से चलते आ रहे खरमास मकर संक्रान्ति के दिन समाप्त हो जाएंगे। इसके उपरांत मांगलिक कार्य जैसे कि गृह प्रवेश, विवाह, मुंडन आदि शुभ कार्य होने शुरू हो जाएंगे। 14 जनवरी से 20 फरवरी तक विवाह हेतु काफी अच्छे और शुभ मुहूर्त हैं।